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मातृ भाषा

    बच्चे को किसी भी भाषा का ज्ञान कैसे दे 

बच्चों को किसी भी भाषा का ज्ञान देने के लिए उसे इस प्रकार से शिक्षा देनी चाहिए की जैसा हम अपनी मातृ भाषा  को अर्जित करते है उसी प्रकार हम दूसरी भाषा को सीख सकते है। ऐसा जब बच्चा छोटा होता है तो वह अपने आस पास के माहौल को देखकर और बड़ो की एक्टिवटी को देखकर उस भाषा को सीख जाता है।  

वह पहले गलत बोलता है और उसके बाद धीरे - धीरे सही बोलने लगता है। इसी प्रकार वह भाषा को सीख जाता है। बच्चो को बच्चो के उदाहरण ही देने चाहिए तभी बच्चे उसे अपने दिमाग़ में डाल लेते है। और धीरे -धीरे वह हर प्रकार की एक्टिवटी कर लेता है। 

यदि कोई बड़ा व्यक्ति किसी भाषा को सीखना चाहता है तो हम उसको एक बच्चे का उदाहरण देकर सीखा सकते है। और हम उसे यह बताकर भाषा सीखा  सकते  जैसे एक छोटा बच्चा कोई भाषा सीखता है उसी प्रकार से आपको दूसरी भाषा सीखनी है। परन्तु आपको सिखने में समय लगेगा लेकिन समय को कोई पता नहीं होता। 

भाषा के माध्यम से बालक या व्यक्ति अपने विचारों ,इच्छाओं और भावनाओं को एक दूसरे से व्यक्त कर सकता है। इसके साथ ही साथ वह दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझ भी सकता है। भाषा हमारी सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का माध्यम है। उसी से सभ्य असभ्य की पहचान होती है। विचारों तथा भावनाओं को व्यक्त करने का अनुपम साधन भाषा ही है।

 बालकों में यदि भाषा का विकास न हो तो निश्चय ही उनकी मानसिक योग्यताओं का विकास जिस सामान्य ढंग से होता है उस ढंग से न हों गूंगे बच्चों में विचार करने की क्षमता उतनी नहीं होती है। जितनी कि भाषा बोलने वाले बालकों में होती है। भाषा के माध्यम से जो विचार एवं भाव प्रकट किये जाते है उनमें स्पष्टता सर्वाधिक होती है। विचारों को व्यक्त करने के अन्य माध्यम भाषा के सामने फीके है भाषा के माध्यम से मनुष्य समाज में अपनी एक अलग पहचान बनता है। 

भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मानव समूहों में विभिन्न सदस्य अपने विचारों का आदान प्रदान करते है। और सामजिक अन्तः क्रियाओं में सहयोग प्रदान करते है इसके अन्तगर्त बोलना ,पढ़ना और लिखना ,सुनना  मुख मुद्रा आदि आते है। ध्वनि प्रतीकों के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति ही भाषा का विकास क्रमिक रूप से होता है। 

 भाषा का शिक्षा से भी घनिष्ट सम्बन्ध है अधिकांश शिक्षा भाषा की ही माध्यम से प्रदान की जाती है। भाषा का सम्बन्ध ध्वनियों से होता है और ध्वनियों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है समस्त भाषाओं का अपना अपना व्याकरण होता है और व्याकरण के निर्धारित नियम होते है। इन्हीं नियमों के आधार पर शब्दों से वाक्यों का निर्माण होता है प्रत्येक भाषा के शब्दों के अर्थ निर्धारित होते है उसकी अपनी एक शैली तथा लिपि होती है भाषा के माध्यम से सामाजिक अन्तः क्रियाएँ होती है। 

 कोई की जितनी आप मेहनत करोगे उतना ही जल्दी आप सीख जाओगे आपको हर दिन रोज बोले जाने बाले शब्दों का प्रयोग रोज करना होगा तभी आप उस भाषा को जल्दी सीख सकते हो अगर आपने ये काम केवल तीस दिन तक ध्यान पूर्वक कर लिया तो आप सीख जाओगे ये मेरी गारंटी है। लेकिन यह हमेशा ध्यान करना है की आपको जो भी भाषा सीखनी है केवल उसी भाषा दोहराना है हर दिन। और हमे तीन चीज जरूर करनी चाहिए।  

१. पढ़ना  २. लिखना  ३. बोलना ४. सुनना अगर आप इन चारों बातों का स्तमाल अपनी प्रतिदिन की जिंदगी कर सकते हो तो आप किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकते है।  






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