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गोबर से क्या क्या बनता है

            उपला या कण्डा का उपयोग 

भारत देश में प्रत्येक गांव के हर घर में उपला या कण्डा का उपयोग ईंधन में किया जाता है। गांव में अभी भी लगभग ७५% से ८०% लोग ईंधन के रूप में उपला या कण्डा का प्रयोग करते है। गांव में जो आमिर लोग होते है वे ही गैस का प्रयोग खाना बनाने में करते है। लेकिन जो गरीब होते है वे तो केवल लकड़ी या अधिकतर उपला या कण्डा का प्रयोग करते है। 

गांव के प्रत्येक घर में गैस सिलेंडर है। जो भारत सरकार ने मुफ्त में वितरित किय थे। परन्तु अगर आप गांव में जाकर देखे तो अधिकतर गैस सिलेंडर हर घर में खाली रखे दिखाई देंगे। उसका एक कारण है गांव के लोगो के पास पूंजी की कमी। इसलिए गांव के प्रत्येक घर में कच्चा चूल्हा आपको जरूर मिलेगा। केवल देखने के लिए ही नहीं उसका उपयोग भी मिलेगा। इस प्रकार हर गांव में गोबर की पूजा भी की जाती है। 

उपला या कण्डा को जब जलाया जाता है। उसके बाद जो उसकी राख बनती है गांव में उसका भी उपयोग जाता है। जैसे किसी भी फसल को कीटो से बचाने के लिए उस पर राख को छिड़क दिया जाता है। 

                           गोबर का उपयोग

गोबर का उपयोग खाना बनाने से लेकर घर की साफ सफाई में भी किया जाता है। गांव में जो लोग बहुत गरीब होते है उनके घर में पक्का फर्श नहीं होता है। वो अपने घर को गोबर को अपने हाथो से या किसी बर्तन से घर में छिड़काव करते है। जिससे घर में रहने वाले सभी प्रकार के कीटाणु नष्ट हो जाते है। और घर में अच्छी खुशबू या सुगंध आने लगती है। 

गोबर का उपयोग खाद में भी किया जाता है। क्योकि गोबर में ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है। गोबर में ऊर्जा की मात्रा को देखते हुए बहुत से गांव में गोबर गैस भी तैयार की जा रही है। जिसको वे अपने घर का खाना बनाने के काम में लाते है। गोबर गैस से हमे दोहरी ऊर्जा प्राप्त होती है। एक तो हमे गैस मिल जाती है और दूसरी उससे हमे खाद प्राप्त होता है। जो हमारे खेतो की भूमि को उपजाऊ बनता है। 

              उपला या कण्डा बनाने की विधि 


उपला या कण्डा के बारे में क्या आपको पता है। यह किस प्रकार तैयार किया जाता है। क्या अपने इसे बनते हुए देखा है। नहीं तो में आपको इसके बारे में बताता हूँ। उपला या कण्डा गाय,भैंस के गोवर से तैयार किया जाता है। 

पहले गोबर को एक स्थान पर इकठा कर दिया जाता है। उसके बाद उसमे कुछ भूसा मिलाया जाता है। फिर  इसके बाद थोड़ा थोड़ा लेकर उसको हाथो से मसलकर उसको थेप थेप कर छोटे छोटे में बांटकर रख दिया जाता है। जब वे कुछ कुछ सूख जाते है तो उनको और अधिक सुखाने के लिए सभी को एक दूसरे के सहारे खड़ा कर दिया जाता है। जब उपला या कण्डा कुछ समय के बाद पूरी तरह से सुख उसका उपयोग किया जाता है। 

जितना उपयोग में लाना होता उसका लिया जाता है। उसके बाद जो बचता है उसको इकठा कर लिया जाता है। 
और फिर ढेर के रूप में बना दिया जाता है। जिसे हम बिटोड़ा कहते है। ये एक प्रकार से गुमंद जैसा दिखाई देता है। फिर उसको चारो ओर से गोबर लगाकर ढक दिया जाता है। और बरसात आने से पहले उपला या कण्डा को पानी से बचने के लिए उसके चारो और घास फूस से बाध दिया जाता है। 





 
 

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