अलंकार किसे कहते है
अलंकार का अर्थ है। गहना या आभूषण जिस प्रकार नारी को आभूषण पहने पर नारी की सुन्दरता बढ़ जाती है। उसी प्रकार से काव्य की शोभा बढ़ती है। अर्थात कविता रूपी शब्दो की शोभा जिन शब्दो से बढ़ती या बढ़ाई जाती है उसे ही अलंकार कहते है। और यह भी कहे सकते है की आभूषण ही अलंकार है। क्योकि एक नारी की शोभा और अधिक जब बढ़ जाती है जब वो आकर्षण आभूषण ग्रहण करती है। संस्कृत में भी लिखा गया है की अलङ्करोति अलंगकारः अर्थात सजाना ही अलंकार है।
अलंकार के प्रकार
अलंकार तीन प्रकार के होते है।
१. शब्दालंकार
२. अर्थालंकार
३. उभयालंकार
शब्दालंकार
जिस अलंकार में शब्दों का प्रयोग करने कोई ही मतलब निकलता है। या कोई चमत्कार हो जाता है तो उसे शब्दालंकार कहते है। अर्थात जिस शब्द को हमने लिखा और उस के स्थान पर कोई उसका पर्यावाची शब्द रख दिया तो उस शब्द का कुछ और ही अंदाज देखने को मिलेगा।
शब्दालंकार के भेद
१. अनुप्रास अलंकार
२. यमक अलंकार
३. उपमा अलंकार
४. उत्प्रेक्षा अलंकार
५. अतिश्योक्ति अलंकार
६. श्लेष अलंकार
७. रूपक अलंकार
८. अन्योक्ति अलंकार
अनुप्रास अलंकार
जब किसी व्यंजन या वर्ण की बार बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। जैसे उदाहरण
१. चारु चंद्र की चंचल किरणे ,खेल रही थी जल थल में
ऊपर दिए गए उदाहरण में अपने देख सकते है की इसमें च वर्ण की आवृति हो रही है। ऐसे और भी बहुत से उदाहरण है। जैसे
२. रघुपति राघव राजा राम यहाँ पर ' र ' शब्द की आवृत्ति है।
३. कालिंदी कूल कदंब की डारिन
४. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए
यमक अलंकार
जहाँ एक ही शब्द बार -बार आता है ,किन्तु उसका अर्थ भिन्न -भिन्न होता है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण -कनक कनक ते सौ गुनी ,मादकता अधिकाय।
यहाँ कनक शब्द दो बार आया है , किन्तु उसके भिन्न - भिन्न अर्थ है | पहले कनक धतूरा तथा दूसरे कनक का अर्थ सोना है।
श्लेष अलंकार
जहाँ कोई शब्द एक ही बार होकर अनेक प्रकट करे ,वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण -रहिमन पानी रखिए ,बिन पानी सब सून
पानी गये न उबरे ,मोती मानुष चून
उपमा अलंकार
जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति की किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से समान गुण -धर्म के आधार पर तुलना की जाए या समानता बतायी जाए वहाँ उपमा अलंकार होता है। जैसे राधा के चरण गुलाब के समान कोमल है।
उपमा अलंकार के चार अंग होते है
१. उपमेय
२. उपमान
३. वाचक
४. साधारण धर्म
उदाहरण - हरिपद कोमल कमल से
हरिपद -उपमाय ,कमल -उपमान ,से -बाचक शब्द ,कोमल-साधारण धर्म
और अन्य उदाहरण -
१. यहीं कहीं पर बिखर गयी वह ,भग्य विजयमाला -सी।
२. अराति सैन्य सिन्धु में सुबाडवाग्नि -से जलो।
३. करि कर सरिस सुभग भुजदण्डा।
४. सजल नीरद -सी कल कान्ति थी।
रूपक अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप किया जाता है अर्थात उपमेय प्रस्तुत और उपमानपरस्तुत में भिन्नता प्रकट की जाये ,वहाँ रूपक अलंकार होता है। जैसे उदाहरण
१. मुख -चंद्र तुम्हारा देख सखे। मन-सागर मेरा लहराता।
यहाँ मुख उपमेय में चंद्र उपमान का तथा मन उपमेय में सागर उपमान का भेद न करके एकरूपता बतायी गयी है
२. हरी -जननी ,मै बालक तेरा।
३. मुनि पद-कमल बंदि दोउ भ्राता।
४. रहीमन धागा प्रेम का ,मत तोरेउ चटकाय।
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