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Inclusive Education in Hindi - समावेशी शिक्षा कब लागू हुई ?

समावेशी विद्यालय का अर्थ समावेशी शिक्षा की प्रकृति समावेशी शिक्षा के लाभ समावेशी शिक्षा का इतिहास समावेशी शिक्षा की आवश्यकता समावेशी शिक्षा का अर्थ क्या होता है  समावेशी शिक्षा का उद्देश्य क्या है समावेशी शिक्षा की क्या विशेषताएं हैं? 

समावेशी शिक्षा एक सामान शिक्षा होती है। इसमें कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। समावेशी शिक्षा एक प्रकार की अखंड शिक्षा की और संकेत करती है जिसके माध्यम से बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग के बच्चों को शिक्षा प्रदान करके एक स्तर पर लाया जा सके। समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है जिसके द्वारा विशिष्ट योग्यता वाले बच्चों जैसे मंदबुध्दि अंधे बच्चें बहरे बच्चें और प्रतिभावशाली बच्चें को ज्ञान प्रदान किया जाता है। 

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समावेशी शिक्षा का उद्देश्य 

स्कूलों में समावेशी शिक्षा का बहुत प्रभाव पड़ता है। और कक्षा में अनेको धर्मो और अनेको बीमारी से ग्रस्त बच्चों को एक साथ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। जिससे बच्चों को अनेक धर्मो की विशताओं की पहचान होती है। और एक दूसरे के साथ बैठकर एक दूसरे की समस्याओं का भी पता चलता है। क्योंकि सभी बच्चें एक दूसरे के साथ पड़ते और खेलते है। एक बच्चे को नयी -नयी चीजों को सीखने का बड़ा शोक होता है। एक ही कक्षा में सभी बच्चें एक साथ सभी त्योहार एक साथ मनाने में बड़ी ख़ुशी होती है। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य सभी धर्मो और एक समान शिक्षा प्रदान करनी होती है इस प्रकार से प्रत्येक बच्चें को प्रत्येक धर्मो का ज्ञान प्राप्त होता है। 

समावेशी शिक्षा की विशेषताए 

  1.  समावेशी शिक्षा की व्यवस्था में जो शारीरिक रूप से कमजोर और विशिष्ट बच्चें सामान्य बच्चों के साथ कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते है इसमें जो शारीरिक रूप से कमजोर होते है उन्हें कुछ अधिक सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। 
  2.  इस शिक्षा में जो बच्चा सामान्य रूप से सही होता है। और जो शारारिक रूप से कमजोर होता है उन्हें कुछ सस्थाओ में कुछ छूट मिलती है जिससे उनकी कमजोरी उनके आड़े ना आए। 
  3.  संस्कृति की शिक्षा 
  4.  समय समय पर विशेष निर्देश प्रदान करना 
  5. बच्चे की रूचि के अनुसार कार्य देना 
  6. प्रोत्साहन प्रदान करना 
  7.  शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन करना 
  8. विशेष कक्षाओं की व्यव्यस्था करना 
  9.  सामाजिक अनुभवों के अवसर देना 
  10.  शिक्षक द्वारा व्यक्तिगत ध्यान देना 
  11. श्रेष्ठ और विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा शिक्षण 
  12. असामाजिक आदतों को रोकना 
  13. भाषा और वाणी का सुधार करना 
  14. असुरक्षा का भाव पैदा ने होने देना 
  15.  पुस्तकालय सुविधाए उपलब्ध कराना 

समावेशी शिक्षा के लाभ 

  • ज्ञान की जांच और विकास की जानकारी मिलती है 
  • उपयोगी पाठय -पुस्तकों व आवश्यकता व योग्यतानुरूप बच्चों का चयन करने में सहायता प्रदान होती है 
  • मापन व मूल्यांकन के माध्यम से बच्चों के वास्तविक भिन्नता की जानकारी मिलती है 
  • शिक्षण विधियों की प्रभावशाली का आकलन मिलता है 
  • जीवनभर चलने वाली यह प्रक्रिया वांछित लक्षणों को पूरा कर रही है अथवा नहीं  जानकारी मिलती है 
  • शिक्षण की गुणवत्ता पाठयक्रम संबंधी सामग्री शैक्षिक तकनीक एवं विद्यालय का आधारभूत ढांचा आदि सभी बच्चों के अध्यन को प्रभावित करते है और उनके ज्ञान एवं अनुभवों में वृद्धि करते है 

समावेशी शिक्षा के प्रकार 

यह दो प्रकार की होती है 

१. सामान्य बच्चों की शिक्षा 

२. विशिष्ट बच्चों की शिक्षा 

सामान्य बच्चों की शिक्षा :- सामान्य रूप से जो बच्चें औसत शारीरिक एवं मानसिक स्तर (IQ ) ९०-११० वाले होते है उन्हें सामान्य बच्चें के रूप में जानते है। 

सामान्य बच्चें सामान्य शारीरिक एवं मानसिक श्रम वाले कार्यो को करने में किसी बाधा का अनुभव नहीं करते है। कक्षा में अधिकांश बच्चों की भांति वे शैक्षिक उपलब्धि  औसत होते है। इनके सीखने की गति औसत होती है। 

विशिष्ट बच्चों की शिक्षा :- क्रीक के अनुसार - विशिष्ट बच्चें मानसिक ,शारीरिक तथा सामाजिक गुणों में सामान्य बच्चों से अलग होते है उनकी भिन्नता कुछ ऐसी सीमा तक होती है कि उसे स्कूल के सामान्य कार्यो में विशिष्ट शिक्षा सेवाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होती है ऐसे बच्चों की लिए कुछ अतिरिक्त अनुदेशन भी चाहिए ऐसी दशा में उनका सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक विकास हो सकता है। 

विशिष्ट बच्चें वह बच्चें है जो कि शारीरिक मानसिक सामाजिक शैक्षिक सावेंगिक एवं व्यावहारिक विषेशताओं के कारण किसी सामान्य या औसत बच्चें से उस सीमा तक सपष्ट रूप से विचलित या अलग होते है। जहाँ कि उसे अपन योग्यताओं क्षमताओं एवं शक्तिओं को समुचित रूप से विकसित करने के लिए परम्परागत शिक्षण या विशिष्ट प्रकार के कार्यकर्मों की आवश्यकता होती है। 

क्रो एंड क्रो के अनुसार :- विशिष्ट प्रकार या विशिष्ट पद किसी गुण या उन गुणों से युक्त व्यक्ति पर लागू होता है जिसके कारण वह व्यक्ति साथियों का ध्यान अपनी ओर विशिष्ट रूप से आकर्षित करता है तथा इससे उसके व्यवहार की अनुक्रिया भी प्रभावित होती है। 

हीबर्ड के अनुसार :- विशिष्ट बच्चों की श्रेणी में वे बच्चें आते है जिन्हे सीखने में कठिनाई का अनुभव होता है या जिनके मानसिक या शैक्षिक निष्पादन या सृजन अत्यंत उच्चकोटि का होता है या जिसको व्यावहारिक एवं सामाजिक समस्याएं घेर लेती है या वे विभिन्न शारीरिक निर्बलताओं से पीड़ित रहते है। जिसके कारण ही उनके लिए अलग से विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। 

फोरनेस के अनुसार :- वशिष्ट ऐसा व्यक्ति है जिसकी शारीरिक मानसिक बुध्दि मांसपेशियों की क्षमताए अनोखी हो जैसे -

जो बच्चें सामान्य बच्चों से अलग होते है वे विशिष्ट बच्चें कहलाते है। 

विशिष्ट बच्चों के लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती है। 

विशिष्ट बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा को समझने में सामान्य शिक्षकों को कठिनाइयां होती है। 

समाज में बहुत प्रकार के व्यक्तित्व के लोग पाय जाते है। कुछ सामाजिक होते है कुछ अंतमुर्खी होते ह तो कुछ असामाजिक होते है। इसी प्रकार से बच्चों में भी विभिन्न प्रकार की वैयत्तितक भिन्नताएँ पाई जाती है। 

विशिष्ट बच्चों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा ककता है 

प्रतिभाशाली बच्चें 

सृजनशील बच्चें 

मन्द बुद्धि बच्चें 

बाल अपराधी बच्चें 

पिछड़े बच्चें 

दृष्टि से पिछड़े बच्चें 

प्रतिभाशाली बच्चें :- ऐसे बच्चें जो अपनी श्रेष्ठा क्षमता एवं योग्यता के बल पर शैक्षिक उपलब्धियों में विद्यालय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त करते है या किसी विशेष क्षेत्र जैसे गणित कला विज्ञान लेखन इत्यादि में उच्च स्तरीय प्रतिभा रखते है प्रतिभाशाली बच्चों को श्रेणी में आते है। 

प्रतिभाशाली बच्चों की निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर उनकी पहचान आसानी से की जा सकती है। 

कोई भी पाठ आसानी से सीखना 

बुद्धि एवं व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग सामान्य बालकों से अधिक करना 

विशाल शब्दकोश 

मानसिक प्रक्रिया में तेजी 

अपनी साथियों की तुलना में अधिक ज्ञान 

सामान्य ज्ञान में रूचि 

सकारात्मक आत्मविश्वास 

जोखिम उठाने की क्षमता 

मौलिक चिंतन की क्षमता 

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता 

हर देश और हर वर्ग के लोगो को समावेशी शिक्षा की बहुत ही आवश्यकता होती है। क्योकि जब एक विशिष्ट बच्चा एक सामान्य बच्चें के साथ शिक्षा ग्रहण करता है तो उसे अपने आप पर एक प्रकार बहुत ही आनंद प्राप्त होता है। जो उस समय वह सब कुछ भूल जाता है जो वह पहले अपने आप को कमजोर और असाहय समझता था। इसलिए समावेशी शिक्षा को हर व्यक्ति को उजागर करना चाहिए जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी को अपने आप पर गर्व हो। 

शैक्षिक रूप से पिछड़े बच्चों की पहचान 

शैक्षिक पिछड़पन के कारणों का पता लगाने के लिए बच्चें के सामजिक आर्थिक स्तर माता - पिता का शिक्षा स्तर एवं सत्र में बच्चें की उपस्थिति विद्यालय में प्रवेश का समय विद्यालय का वातावरण शिक्षकों का सेषिक ज्ञानात्मक स्तर प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण विधियों एवं उपकरणों आदि का ज्ञान सहायक सिद्ध हो सकती है। मनोवैज्ञानिकों ने पिछड़पन का कारण बच्चों का मंद बुद्धि होना पाया है। बुद्धि अर्जन के लिए उनके आयु वर्ग के लिए उपलब्धि परीक्षण पर मानसिक आयु ज्ञान का ली गई है। इसके बाद गणना निम्न सूत्र से कर लेते है -

निम्न सूत्र से कर लेते है 

बुद्धि लाभ = मानसिक आयु / वास्तविक आयु *100 

                          अथवा 

                  IQ =MA /CA *100 

समावेशी शिक्षा 19 वीं  शताब्दी में अमेरिका तथा यूरोप में अपंग बच्चों के लिए सबसे पहले शुरू हुई। 

समावेशी शिक्षा के संपादक डा० माइकेल सैडलर थे 

जब की समावेशी शिक्षा भारत में 2006 में आई। 






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