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शिक्षा एक प्रेरणा है

इसे हम कैसे परिभाषित कर सकते है

और हमे यह भी पता चल जाता है की उनके जीवन में कितनी अर्चन पैदा हुई और उन्हें यह उपल्धि पुरे संसार में किस प्रकार से मिली। इसलिए हमेशा महापुरषो की जीवन गाथा को हमे पढ़ना चाहिए,सुनना चाहिए ,और उनके आदर्शो पर चलना चाहिए .

तभी हम एक अच्छे व्यक्तित्व को हाशिल कर पायगे। इस प्रकार हमारा जीवन व्यर्थ नहीं जायेगा और हम अपने जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समाज की बुराइओं को निडर होकर उनका सामना कर सकते है।

शिक्षा से हमें धन की प्राप्ति होती है। शिक्षा से हमे उपलब्धि प्राप्त होता है। और जिससे हम पुरे संसार में उसको फैला सकते है। अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद हमें अच्छीनौकरी मिलगी जिससे हमे अपने परिवार को अच्छे तरीके से पढ़ाएंगे और लिखायगे और फिर हमारी आने वाली पीढ़ी को भी अच्छी शिक्षा मिलगी।

यह एक ऐसा ज्ञान है की अगर आप इस को अपने मन से लगा ले तो यह आपकी हो जायेगी लेकिन आप इससे दूर जाने की कोशिस करोगें तो यह आप से कोसो दूर चली जायगी फिर उसे प्राप्त करना काफी मुस्कील हो जायेगा।

बच्चे की सभी बुनयादी आवश्यकता को पूरा करना ही शिक्षा है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया। इसका अर्थ हुआ सीखना और सीखने की प्रकिया। बच्चा तभी समाज से जुड़ पता है जब वो समाज के इतिहास को जान पाता है।

अगर पर पाठशाला न होती तो क्या होता ?

अगर पर पाठशाला न होती तो क्या होता ? अगर स्कूल कॉलेज न होते हो बच्चे कैसे पढ़ते और बच्चो को शिक्षा कहाँ से प्राप्त होती। ये सभी प्रकार के सवाल हमारे मन में आते रहते है। पुराने समय में आपने देखा या सुना होगा की प्रत्येक व्यक्ति अपनी जुबान का पाबंद होता था।

जो एक बार किसी से कहे दिया वो पथर की लकीर हो जाया करती थी। पत्थर की लकीर का मतलब है की कभी न मिटने बाली बात।

इसी प्रकार से लोग अपनी बातों को एक दूसरे से करते थे तब शिक्षा का कम प्रचलन था। पहले मुँह से बोले गया शब्द ही आज के कागज पर लिखे हुए शब्द के बराबर हुआ करता था। लेकिन धीर -धीरे यह प्रकिया लुप्त होती गयी।

जैसे जैसे जन्संख्या या परिवार बढ़ते गए और एक दूसरे में मनमुटाव होने लगा वैसे वैसे व्यक्ति की जुबान की भी कोई कीमत नहीं रही। नहीं तो पहले तो लकड़ा लड़की आपस में एक दूसरे को जब तक नहीं देखा करते थे जब तक उनकी शादी न हो जाए।

जो घर में बड़े होते थे उन्ही को घर संसार हो चलने या उनके तोर तरीको को समझना या उन्हें पूरा करना उन्ही के हाथो में हुआ करता था। वो आपस में ही बात कर लिया करते थे।

क्योकि उस समय लोगो में प्रेम मोहब्त काफी थी उस समय प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे पर अपनी जान न्योछाबर करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। और फिर आज के युग जैसा माहौल आ गया आज कल तो इन्शान को इन्शान ही नहीं समझता है।

आदमी इतना व्यस्त हो चूका है की उसे अपने परिवार की देखभाल को भी सही समय नहीं मिल पा रहा है। दुसरो की तो छोड़ ही दो जो व्यक्ति अपने काम में इतना व्यस्त है वो भला दुसरो को कैसे देखेगा | सब अपनी अपनी जिंदगी के बारे में सोचते है।

यही नहीं कुछ लोग तो अपने बूढ़े माँ बाब को भी भूल जाते है। जिन्होंने उन्हें जन्म दिया जिसने उनके जीवन को साकार किया। जिन्होंने ये नहीं देखा की हम किन किन कठिनाओ को झेलकर उनका पालन पोषण करे थे। शिक्षा तो पहले थी अब तो एक प्रकर का व्यवसाय बन के रह गया है।

शिक्षा उसे कहते है जो व्यक्ति अपने परिवार और आस पास के व्यक्तिओ को साथ लेकर चले। और पुरे संसार के बारे में कुछ अच्छा करने के लिए आगे आये। और लोगो को जागरूक करे एक दूसरे को प्यार करना ही शिक्षा है | अब तो शिक्षा का रूप ही बदल गया है।

अब तो एक दूसरे के ऊपर चढ़कर या एक दूसरे को दबाकर आगे आ जाना ही शिक्षा का मतलब हो गया है। इस समय कमजोर व्यक्ति की कोई पहचान नहीं है। जो कमजोर है वो कमजोर ही रह जायेगा क्योकि उसे कोई भी सहारा नहीं देता है। कहते है की कमजोर का कोई नहीं होता शक्तिशाली के लाखो होते है।

सफलता का रास्ता ईमानदारी की पटरी से होकर ही जाता है।

अगर आप सफल होना चाहते है तो अपने अंदर की प्रतिभा को पहचानिए।

सोचने में अपना समय व्यर्थ मत कीजिए अभी अपना कार्य प्रारंभ कर दे।

समय की बर्बादी आपको विनाश की ओर ले जाती है।

केवल विचारों में बहने वाले व्यक्ति जीवन में सफल नहीं होते।










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