कभी -कभी हमारी जिंदगी में ऐसे भी मोड़ आ जाते है
कभी -कभी हमारी जिंदगी में ऐसे भी मोड़ आ जाते है। की हम अपने आप से फैसला नहीं कर पाते है की हमे क्या करना चाहिए की वो फैसला हमारे लिए अच्छा है या बुरा है बस हम वही पर दुसरो का सहारा लेना पड़ता है। इसमें कोई डर नहीं है कि हमे दुसरो से भी कुछ सीखना चाहिए। किसी से भी कोई शिक्षा मिल रही तो उसमे कोई बुराई नहीं है। हमे यही सोचना चाहिए की कुछ हमे मिल ही रहा है हमारा इसमें कुछ जा तो नहीं रहा है।हमेशा दुसरो से भी कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए इसमें हमारा ही फायदा है।
एक समय की बात है जब मैंने डिप्लोमा और डिग्री की दोना का उसी साल अभियांत्रिकी प्रवेश परीक्षा दी थी। लेकिन मेरा दोनों में ही नंबर आ गया था। अब मेरे पास सोचने के लिए दो रास्ते थे की में किस रास्ते पर जाना चाहूंगा। में उस समय सोचने पर मजबूर हो गया था की मुझे किस में प्रवेश लेना है। क्योकि मेरे माता पिता पढ़े लिखे नहीं थे वे अनपढ़ थे उन्होंने ने कभी कोई पढाई नहीं की थी। फिर भी उनके हौसले इतने बुलंद थे की वो जो ठान लेते थे तो उसे कर ही लेते थे। इसलिए आज भी मेरे माता पिता को गांव में कमेरा मतलब बहुत अधिक काम करने बाला कमेरी मतलम बहुत अधिक काम करने बाली कहते है। क्योकि वे हमेशा अपने काम में लगे रहते थे।
फिर भी मेने उन्हें समझाया की पापा जी है तो दोनों ही अभियंत्रकी लेकिन एक छोटी है और एक बड़ी है। एक तीन साल की है और एक चार साल की। तब उन्हें समझ आया लेकिन समस्या थी पूंजी की फिर दोनों सोच में पड़ गए। अब में क्या करू क्योकि मेरे माता पिता को पढाई लिखाई के बारे में उन्हें कुछ अच्छा खासा जानकारी भी नहीं थी। इसलिए मेरे सामने बहुत बड़ी चिंता की बात थी। मेरे मम्मी पापा ने मुझसे बोला की बेटा जो तुझे अच्छा लगे तो वो कर ले हम तो पैसा लगा सकते है। लेकिन मेरे घर की हालत उस समय सही नहीं थी।
मैंने अपने माता पिता से कहा की डिग्री में बहुत पैसे लगते है और डिप्लोमा में कम लगते है। में डिप्लोमा कर सकता हूँ अपने घर की हालत को देखकर बोला। लेकिन मेरे माता पिता ने मुझसे कहा की बेटा बड़ी वाली कर ले लेकिन मेरा मन गवाही नहीं दे रहा था। मुझे ये भी पता था की पढाई तो दोनों में ही करनी है। अब मेने ठान लिया था की में डिग्री ही करूंगा।
फिर मेरे पास दोना का परामर्श सेवा पात्र आ गया था। लेकिन अब और एक समस्या आ गयी थी। क्योकि दोनों की परामर्श तारीख एक ही थी। फिर किस्मत ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। फिर भी मेने डिग्री की ही परामर्श सेवा में जाने का निर्णय लिया और में चला गया। लेकिन मेरा नंबर अगले दिन आना था अब और भी समस्या पैदा हो चुकी थी की अब क्या करा जाय। डिग्री में पता नहीं की नंबर कहा आये लेकिन डिप्लोमा में तो मेरे नंबर भी अच्छे है। और मेरा नंबर सरकारी कॉलेज में आ जायेगा।
एक बार फिर मेरा मन विचलित हो गया और में डिप्लोमा में प्रवेश ले लिया। आज तक वो बाते मुझे अभी तक सोचने पर मजबूर कर देती है। क्योकि जो हम पाना चाहते है वो हमे मिलता नहीं मिल तो जाता है लेकिन हमे इसके लिए कुछ खोना पड़ता है। हिंदी में एक कहावत अपने सुनी होगी की कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। इसे ही जिंदगी के मोड़ कहते है।
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