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हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं इतिहास

 हिंदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

१. प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएँ 

भारत में मोठे तौर पर दो परिवारों की भाषाएं बोली जाती है। उत्तर भारत मे भारोपीय परिवार के अंतर्गत आने वाली आर्य भाषाएं और दक्षिण भारत मे द्रविड़ परिवार के अंतर्गत आने वाली द्रविड़ भाषाएं। 

वैदिक संस्कृत > लौकिक संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > हिंदी



आर्य परिवार की भाषाएं 
इसे भारोपीय परिवार की भाषाएं भी कहते है। हिंदी एवं अन्य भाषाओ का सम्बंद इसी परिवार से है। आर्य भाषाओ का काल १५०० ई. पूर्व से लेकर अब तक माना जाता है। जिसे तीन भागो में दर्शाया गया है। 

क. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (१५०० ई. पूर्व से ५०० ई. तक )
ख. मध्य भारतीय आर्य भाषा काल  (५०० ई. पू. से १००० ई. तक )
ग. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल  (१००० ई. से अब तक )

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल के अंतर्गत दो भाषाए है -वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। मध्य भारतीय आर्य भाषा काल के अंतर्गत तीन भाषाए है - पालि ,प्राकृत और अपभ्रंश। आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल के अंतर्गत हिंदी एवं अन्य आर्य भाषाओं को गिना जाता है। 

हिंदी से ठीक पहले की भाषा अपभ्रंश है। किन्तु भाषाओं का विकासक्रम इस प्रकार समझा जा सकता है। 

वैदिक संस्कृत > लौकिक संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > हिंदी 

इस प्रकार भारत की प्राचीनतम भाषा वैदिक संस्कृत है जिसका प्रयोग वैदिक संहिताओं ,ब्राह्राण ग्रंथो ,आरण्यकों तथा प्राचीन उपनिषदों में मिलता है। जबकि लौकिक संस्कृत पाणिनि के द्वारा वरकरणबध्द कर दी गई भाषा है अतः उसमे भाषिक रूपों की अनिश्चिता नहीं है।

 संस्कृत वह भाषा है जिसका संस्कार कर दिया गया है। बाल्मीकि रामायण ,महाभारत ,रघुवंश ,उत्तररामचरित ,आदि ग्रन्थ लौकिक संस्कृत मे ही लिखें गये है। 

मोटे तौर पर हम कह सकते है कि वैदिक संस्कृत वह भाषा है जिसका प्रयोग वेदों और उससे सम्बंधित ग्रंथो मे किया गया जबकि लौकिक संस्कृत का प्रयोग काव्यग्रंथो ,नाटकों आदि मे हुआ है। 

वैदिक संस्कृत भाषा 

वैदिक संस्कृत आज से लगभग ३५०० वर्ष पहले की भाषा है। जिसका प्रयोग वैदिक संहिताओं ,आरण्यक ग्रंथो ,ब्राह्राण ग्रंथो तथा प्राचीन उपनिषदों मे किया गया है। यधपि वैदिक संस्कृत का कोई सुनिश्चित रूप नहीं था तथापि उसकी कुछ ध्वन्यात्मक एवं व्याकरणिक विशेताएं मानी जाती है। 

ऋग्वेद के पहले मंडल एवं दसवे मंडल की भाषा मे पाया जाने वाला अंतर इस बात को प्रमाणित करता है कि वेद किसी एक व्यक्ति की कृति न होकर समय समय पर ऋषियों के द्वारा रचित वैदिक मंत्रो का संकलन मांत्र है। डॉ. भोलानाथ तिवारी का अनुमान है कि तत्कालीन बोलचाल की भाषा संभवत: वैदिक संस्कृत के निकट रही होगी यधपि इसका आशय यह नहीं है कि इसमें बोलचाल की भाषा के सभी रूप सुरक्षित है। 

लौकिक संस्कृत भाषा 

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की दूसरीं प्रमुख भाषा लौकिक संस्कृत थी। संस्कृत का अर्थ है जिसका संस्कार कर दिय गया है। वर्दिक संस्कृत में जिन तीन रूपों - पश्चिमोत्तरी ,मध्यवर्ती एवं पूर्वी का उल्लेख किया गया जाता है। उसमे से लौकिक संस्कृत का मूल आधार पश्चिमोत्तरी बोली थी। क्योकि वही प्रामाणिक भाषा मणि जाती थी। पाणिनि ने इसी भाषा को व्याकरणबद्ध कर अष्टाध्यायी की रचना की। 

लौकिक संस्कृत साहित्यिक भाषा है। संस्कृत भाषा मे उपलब्ध साहित्यिक ग्रन्थ इसी भाषा मे लिखे गये है। संस्कृत का प्राचीनतम काव्यग्रंथ रामायण माना जाता है। जिसकी रचना आदिकवि वाल्मीकि ने की। पाणिनि ने जिस भाषा को व्याकरणबध्द किया वह क्रिया लय बोलचाल की भाषा अवश्य थी। 

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